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पतंजलि योग सूत्राणि - 1 (समाधि पाद) अथ समाधिपादः । अथ योगानुशासनम् ॥ 1 ॥ योगश्चित्तवृत्ति निरोधः ॥ 2 ॥ तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम् ॥ 3 ॥ वृत्ति सारूप्यमितरत्र ॥ 4 ॥ वृत्तयः पंचतय्यः क्लिष्टाऽक्लिष्टाः ॥ 5 ॥ प्रमाण विपर्यय विकल्प निद्रा स्मृतयः ॥ 6 ॥ प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि ॥ 7 ॥ विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूप प्रतिष्ठम् ॥ 8 ॥ शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः ॥ 9 ॥ अभाव प्रत्ययालंबना वृत्तिर्निद्रा ॥ 10 ॥ अनुभूत विषयासंप्रमोषः स्मृतिः ॥ 11 ॥ अभ्यास वैराग्याभ्यां तन्निरोधः ॥ 12 ॥ तत्र स्थितौ यत्नोऽभ्यासः ॥ 13 ॥ स तु दीर्घकाल नैरंतर्य सत्कारासेवितो दृढभूमिः ॥ 14 ॥ दृष्टानुश्रविक विषय वितृष्णस्य वशीकारसंज्ञा वैराग्यम् ॥ 15 ॥ तत्परं पुरुषख्याते-र्गुणवैतृष्ण्यम् ॥ 16 ॥ वितर्क विचारानंदास्मितारूपानुगमात् संप्रज्ञातः ॥ 17 ॥ विरामप्रत्ययाभ्यासपूर्वः संस्कारशेषोऽन्यः ॥ 18 ॥ भवप्रत्ययो विदेहप्रकृतिलयानाम् ॥ 19 ॥ श्रद्धा वीर्य स्मृति समाधिप्रज्ञा पूर्वक इतरेषाम् ॥ 20 ॥ तीव्रसंवेगानामासन्नः ॥ 21 ॥ मृदुमध्याधिमात्रत्वात्ततोऽपि विशेषः ॥ 22 ॥ ईश्वरप्रणिधानाद्वा ॥ 23 ॥ क्लेश कर्म विपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुषविशेष ईश्वरः ॥ 24 ॥ तत्र निरतिशयं सर्वज्ञबीजम् ॥ 25 ॥ स एषः पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात् ॥ 26 ॥ तस्य वाचकः प्रणवः ॥ 27 ॥ तज्जपस्तदर्थभावनम् ॥ 28 ॥ ततः प्रत्यक्चेतनाधिगमोऽप्यंतरायाभावश्च ॥ 29 ॥ व्याधि स्त्यान संशय प्रमादालस्याविरति भ्रांति दुःख दौर्मनस्यांगमेजयत्व श्वासप्रश्वासा विक्षेपसहभुवः ॥ 31 ॥ तत्प्रतिषेधार्थमेकतत्त्वाभ्यासः ॥ 32 ॥ मैत्री करुणा मुदितोपेक्षाणां सुख दुःख पुण्यापुण्य विषयाणाम्-भावनातश्चित्तप्रसादनम् ॥ 33 ॥ प्रच्छर्दन विधारणाभ्यां वा प्राणस्य ॥ 34 ॥ विषयवती वा प्रवृत्तिरुत्पन्ना मनसः स्थिति निबंधिनी ॥ 35 ॥ विशोका वा ज्योतिष्मती ॥ 36 ॥ वीतराग विषयं वा चित्तम् ॥ 37 ॥ स्वप्न निद्रा ज्ञानालंबनं वा ॥ 38 ॥ यथाभिमतध्यानाद्वा ॥ 39 ॥ परमाणु परम महत्त्वांतोऽस्य वशीकारः ॥ 40 ॥ क्षीणवृत्तेरभिजातस्येव मणेर्ग्रहीतृग्रहण ग्राह्येषु तत्स्थ तदंजनता समापत्तिः ॥ 41 ॥ तत्र शब्दार्थ ज्ञान विकल्पैः संकीर्णा सवितर्का समापत्तिः ॥ 42 ॥ स्मृति परिशुद्धौ स्वरूप शून्येवार्थ मात्रनिर्भासा निर्वितर्का ॥ 43 ॥ एतयैव सविचारा निर्विचारा च सूक्ष्मविषया व्याख्याता ॥ 44 ॥ सूक्ष्म विषयत्वं चालिंगपर्यवसानम् ॥ 45 ॥ ता एव सबीजः समाधिः ॥ 46 ॥ निर्विचार वैशाराद्येऽध्यात्मप्रसादः ॥ 47 ॥ ऋतंभरा तत्र प्रज्ञा ॥ 48 ॥ श्रुतानुमान प्रज्ञाभ्यामन्यविषया विशेषार्थत्वात् ॥ 49 ॥ तज्जः संस्कारोऽन्यसंस्कार प्रतिबंधी ॥ 50 ॥ तस्यापि निरोधे सर्वनिरोधान्निर्बीजस्समाधिः ॥ 51 ॥ इति पातंजलयोगदर्शने समाधिपादो नाम प्रथमः पादः । |