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गणपति अथर्व षीर्षम् (गणपत्यथर्वषीर्षोपनिषत्)

|| गणपत्यथर्वशीर्षोपनिषत् (श्री गणेषाथर्वषीर्षम्) ||

द्रं कर्णे'भिः शृणुयाम' देवाः | द्रं प'श्येमाक्षभिर्यज'त्राः | स्थिरैरङ्गै''स्तुष्ठुवाग्^ं स'स्तनूभिः' | व्यशे'म देवहि'तं यदायुः' | स्वस्ति इन्द्रो' वृद्धश्र'वाः | स्वस्ति नः' पूषा विश्ववे'दाः | स्वस्ति स्तार्क्ष्यो अरि'ष्टनेमिः | स्वस्ति नो बृस्पति'र्दधातु ||

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः' ||

ॐ नम'स्ते णप'तये | त्वमेप्रत्यक्षं तत्त्व'मसि | त्वमेकें कर्ता'ऽसि | त्वमेकें धर्ता'ऽसि | त्वमेकें हर्ता'ऽसि | त्वमेव सर्वं खल्विदं' ब्रह्मासि | त्वं साक्षादात्मा'ऽसि नित्यम् || 1 ||
ऋ'तं च्मि | स'त्यं च्मि || 2 ||

त्वं माम् | अव' क्तारम्'' | अव' श्रोतारम्'' | अव' दातारम्'' | अव' धातारम्'' | अवानूचानम'व शिष्यम् | अव' श्चात्ता''त् | अव' पुरस्ता''त् | अवोत्तरात्ता''त् | अव' क्षिणात्ता''त् | अव' चोर्ध्वात्ता''त् | अवारात्ता''त् | सर्वतो मां पाहि पाहि' सन्तात् || 3 ||

त्वं वाङ्मय'स्त्वं चिन्मयः | त्वमानन्दमय'स्त्वं ब्रह्ममयः | त्वं सच्चिदानन्दाऽद्वि'तीयोऽसि | त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मा'सि | त्वं ज्ञानमयो विज्ञान'मयोऽसि || 4 ||

सर्वं जगदिदं त्व'त्तो जायते | सर्वं जगदिदं त्व'त्तस्तिष्ठति | सर्वं जगदिदं त्वयि लय'मेष्यति | सर्वं जगदिदं त्वयि' प्रत्येति | त्वं भूमिरापोऽनलोऽनि'लो भः | त्वं चत्वारि वा''क्पदानि || 5 ||

त्वं गुणत्र'यातीतः | त्वं अवस्थात्र'यातीतः | त्वं देहत्र'यातीतः | त्वं कालत्र'यातीतः | त्वं मूलाधारस्थितो'ऽसि नित्यम् | त्वं शक्तित्र'यात्मकः | त्वां योगिनो ध्याय'न्ति नित्यम् | त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्म भूर्भुः स्वरोम् || 6 ||

णादिं'' पूर्व'मुच्चार्य र्णादीं'' स्तदन्तरम् | अनुस्वारः प'ररः | अर्धे''न्दुसितम् | तारे'ण द्धम् | ऎतत्तव मनु'स्वरूपम् | गकारः पू''र्वरूपम् | अकारो मध्य'मरूपम् | अनुस्वारश्चा''न्त्यरूपम् | बिन्दुरुत्त'ररूपम् | नादः' सन्धानम् | सगंहि'ता न्धिः | सैषा गणे'शविद्या | गण'क षिः | निचृद्गाय'त्रीच्छन्दः | श्री महागणपति'र्देवता | ॐ गं णप'तये नमः || 7 ||

एकन्ताय' विद्महे' वक्रतुण्डाय' धीमहि |
तन्नो' दन्तिः प्रचोदया''त् || 8 ||

एकदन्तं च'तुर्हस्तपाशमं'कुधारि'णम् | रदं' वर'दं स्तैर्बिभ्राणं' मूकध्व'जम् | रक्तं' म्बोद'रं शूर्पकर्णकं' रक्तवास'सम् | रक्त'गन्धानु'लिप्ताङ्गक्तपु'ष्पैः सुपूजि'तम् | भक्ता'नुकम्पि'नं देगत्का'रमच्यु'तम् | आवि'र्भूतं च' सृष्ट्यादौ प्रकृते''ः पुरुषात्प'रम् | एवं' ध्यायति' यो नित्य योगी' योगिनां व'रः || 9 ||

नमो व्रातपतये नमो गणपतये नमः प्रमथपतये नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय विघ्नविनाशिने शिवसुताय श्रीवरदमूर्तये
नमः || 10 ||

एतदथर्वशीर्षं योऽधीते | स ब्रह्मभूया'य ल्पते | स सर्वविघ्नै''र्न बाध्यते | स सर्वतः सुख'मेते | स पञ्चमहापापा''त् प्रमुच्यते | सायम'धीयानो दिवसकृतं पापं' नायति | प्रातर'धीयानो रात्रिकृतं पापं' नायति | सायं प्रातः प्र'युञ्जानो पापोऽपा'पो वति | धर्मार्थकाममोक्षं' च विन्दति | इदमथर्वशीर्षमशिष्याय' न देयम् | यो यदि मो'हाद् दास्यति स पापी'यान् वति | सहस्रावर्तनाद्यं यं काम'मधीते | तं तमने'न साधयेत् || 11 ||

अनेन गणपतिम'भिषिञ्चति | स वा'ग्मी वति | चतुर्थ्यामन'श्नन् पति स विद्या'वान् वति | इत्यथर्व'णवाक्यम् | ब्रह्माद्याचर'णं विद्यान्न बिभेति कदा'चनेति || 12 ||

यो दूर्वाङ्कु'रैर्यजति स वैश्रवणोप'मो वति | यो ला'जैर्यजति स यशो'वान् वति | स मेधा'वान् वति | यो मोदकसहस्रे'ण जति स वाञ्छितफलम'वाप्नोति | यः साज्य समि'द्भिर्यजति स सर्वं लभते स स'र्वं भते || 13 ||

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग् ग्रा'हयित्वा सूर्यवर्च'स्वी वति | सूर्यग्रहे म'हाद्यां प्रतिमासन्निधौ वा प्त्वा सिद्धम'न्त्रो वति | महाविघ्ना''त् प्रमुच्यते | महादोषा''त् प्रमुच्यते | महापापा''त् प्रमुच्यते | महाप्रत्यवाया''त् प्रमुच्यते | स सर्व'विद्भवति स सर्व'विद्भवति | य ए'वं वेद | इत्यु'पनिष'त् || 14 ||

द्रं कर्णे'भिः शृणुयाम' देवाः | द्रं प'श्येमाक्षभिर्यज'त्राः | स्थिरैरङ्गै''स्तुष्ठुवाग्^ं स'स्तनूभिः' | व्यशे'म देवहि'तं यदायुः' | स्वस्ति इन्द्रो' वृद्धश्र'वाः | स्वस्ति नः' पूषा विश्ववे'दाः | स्वस्ति स्तार्क्ष्यो अरि'ष्टनेमिः | स्वस्ति नो बृस्पति'र्दधातु ||

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः' ||

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